कूड़ा-करकट के निपटारे द्वारा पर्यावरण परिवर्तन, पर्यावरण पर कृषि विकास का अधिक प्रभाव
कूड़ा-करकट के निपटारे द्वारा पर्यावरण परिवर्तन
औद्योगिकृत नगरी पारिस्थितिकी तंत्र अनिवार्यता बड़ी मात्रा में घरेलू , औद्योगिक और आणविक पूरा करकट को बढ़ावा देता है । भारी ऊर्जा का उपभोग तथा नगरीय समुदायों का उच्च जनसंख्या घनत्व , गंदा पानी और माल जल तथा घरेलू कूड़ा करकट उत्पन्न करते हैं । दूषित जल , संक्रामक बीमारियों जैसे टाइफाइड और है जा जैसी संक्रामक बीमारियों का कारण बनता है । इस प्रकार की बीमारियां न केवल विकासशील देशों में प्राय होती रहती है , वर्णन विकसित देशों में भी होती है जहां माल जल का व्यापक रूप से विसर्जन किया जाता है । माल जल में नाइट्रेट और फास्फेट पदार्थ की अधिकता रहती है जिसके शुद्धिकरण के पश्चात केवल 50% को ही दूर किया जा सकता है , शेष जल निकास की नालियों में छोड़ दिया जाता है जो झीलों और तालाबों में बकर जाता है जिससे उनका जल प्रदूषित हो जाता है। इंडोनेशिया , मलेशिया और फिलिपींस देश में यह समस्या अति गंभीर हो गई है । घरेलू कूड़ा करकट के निपटारे के लिए नगरी स्थिति की तंत्र के निकट में ही गड्ढे भरने के स्थान की आवश्यकता होती है । ऐसे कूड़े करकट से भरे जमीनी गधे बदबू देते हैं । इस प्रकार के कूड़े करकट से भरे गड्ढे मेथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे गैस उत्पन्न करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है । अनेक बार यह कूड़ा-करकट से भरे गड्ढे निकटवर्ती समुदायों के लिए हानिकारक और स्वास्थ्य के लिए आपदा की संभावना उत्पन्न करते हैं। विकासशील देशों में स्थिति और भी दयनीय है जहां अनेक लोग इन कूड़े- करकट भरे गड्ढे के निकट अथवा ऊपर ही निवास करते हैं।
औद्योगिक कचरे में ठोस कूड़ा करकट तथा इसके अतिरिक्त रसायन , अपमार्जक धात्विक और संश्लिष्ट मिश्रण होते हैं । भारी धातु रसायन जल तंत्र को प्रदूषित कर देता है , जो जलीय जीवन और स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं । यह कहा गया है कि पर भी शक्ति कारण नदी मंडल और दृश्य श्रवण क्रिया को हानि पहुंचती है अगर विशेष कर और जन्मे भ्रूण को हानि पहुंचती है । मैथल पार की शक्ति करण के ऐसे अनेक उदाहरण है जो अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर घातक सिद्ध हुए हैं । इनमें से एक सर्वाधिक उदाहरण जापान में 1953 75 के कल की घटना है जिसमें स्थानीय रासायनिक संयंत्रों से निकला मैथल पर समुद्री आहार क्षेत्र में प्रवेश कर गया । पारे के अपशिष्ट एकत्र होकर उच्च पोषस्तर की मछलियों में समाहित हो गए हैं। इन मछलियों का उपयोग स्थानीय मछुआरों ने किया जिसके परिणाम स्वरुप लगभग 100 से अधिक व्यक्ति मर गए और लगभग 1000 अपंगता के शिकार हो गए।
भारी धातु संयंत्र से निकला औद्योगिक बहिर्षव स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है । इसके अतिरिक्त भूतल जल और मृदा की भारी धातु के द्वारा दूषित होते हैं
आणविक ईंधन का बढ़ता हुआ उपयोग परंपरागत ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । वर्तमान में विश्व ऊर्जा की आवश्यकताओं का 4% आणविक शक्ति से प्राप्त होता है । अनेक आणविक रिएक्टर विशेष कर विकसित देशों में कार्यरत है । विश्व में रिएक्टरों की कुल संख्या 400 से अधिक है जिनमें से 39 और 37 क्रमशः ब्रिटेन और फ्रांस में स्थित है।
आणविक कचरे में रेडियोधर्मी समस्थानिक होते हैं , जो बड़ी मात्रा में उसका उत्पादित करते हैं । ए रेडियो धार्मिक तत्व हजार वर्षों तक क्रियाशील रहते हैं । आणविक कचरे का धारा जैव मंडल के लिए एक गंभीर खतरा है इसके अतिरिक्त यह भी मालूम हुआ है की आणविक कचरा ने पारिस्थितिकी समस्याएं उत्पन्न कर दी है और इस प्रकार का विचार प्रस्तुत किया गया है की आणविक रिएक्टरों के निकट के क्षेत्र की जनसंख्या में बाल्यकाल में होने वाला ल्यूकेमिया का प्रभाव पाया जाता है । अक्टूबर 1993 में जापानी प्रशासन ने रूस द्वारा जापान के निकटवर्ती जापान सागर में आणविक कचरा डाले जाने पर विरोध प्रकट किया था।
इस प्रकार घरेलू औद्योगिक और आणविक कूड़ा करकट और उसका नहीं बता रहा स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट है जो जैव मंडल को संकट में डाल सकता है । जीवांश और आणविक ईंधन तथा उद्योगों द्वारा वायु , जल और मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए यह आवश्यक है कि मानव सभ्यता को यदि बचाना है तो सशक्त उपाय अपनाने होंगे । इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक सहयोग और भविष्य के लिए अधिक दूरदर्शी ऊर्जा नीति अनिवार्य है।
पर्यावरण पर कृषि विकास का अधिक प्रभाव
पौधों का घरेलू बनाया जाना लगभग 10000 बी पूर्व दक्षिण पश्चिम एशिया में आरंभ किया गया था अगर उसके पश्चात करोड़ों लोगों की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसका अन्य महाद्वीपों में भरपूर और तीव्रता से विस्तार किया गया । कृषि ने बुक बटन को बदल दिया है और आधुनिक कृषि है जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग से अत्यधिक पर्यावरणीय परिवर्तन हुए हैं । इनमें से अनेक परिवर्तन , जैव रसायन चक्र और ऊर्जा प्रवाह कुशलता के प्रत्यक्ष प्रमाण है और विशेष का रासायनिक करो के उपयोग और फसल रक्षक रसायनों के प्रयोग से संबंधित है , जब की भूपटल परिवर्तन पर आया करीब और अवलोकनिया होते हैं । कृषि रसायनों के उपयोग से जो अनेक परिवर्तन हुए हैं और जो अभी हो रहे हैं , हालांकि उनका पता लगा पाना कठिन है । ऐसी उच्च कृषि रसायनों का सावधान परिणाम महत्वपूर्ण अधिक प्रभाव के रूप में घटित हुआ । भूमि अपरदन और लावणीकरण तथा मारूविस्तरीकारण विश्व के सघन खदान उत्पादक क्षेत्र और अर्ध शुष्क प्रदेशों में बढ़ती हुई गंभीर समस्याएं हैं । पिछले दो दशकों में कृषि या पद्धति का उद्देश्य आधिकाधिक अन्य उत्पादन करना रहा है, यह भी प्राकृतिक निवास के विनाश का अभूतपूर्व अनुपात रहा है । इस प्रक्रिया में कृषकों और संरक्षण वीडियो के बीच अत्यधिक उग्रता उत्पन्न कर दी है । इसके अतिरिक्त , फसल संरक्षण रसायनों के उपयोग पर भी व्यापक परिस्थितिकीय प्रक्रियाएं उत्पन्न हुई है । न केवल विकसित देशों में ही पर्यावरणीय परिवर्तन हुए हैं वरन विकासशील देशों में भी कृषि परंपरागत की अपेक्षा अधिक प्रौद्योगिकीकृत होती रही है।
पिछले 30 वर्षों में , भूमंडलीय कृषि ने विश्व भजन आपूर्ति के विस्तार में महत्वपूर्ण प्रगति की है । प विश्व जनसंख्या इस अवधि में दोगुनी हो गई है , भोजन उत्पादन इससे भी अधिक तेजी से बड़ा है , जीत के कारण ही विश्व के खेत और चारागाह बड़े हुए 1.5 बिलियन लोगों का आज भरण पोषण कर पा रहे हैं । यह उन्नति विशेष रूप से विकासशील देशों में महत्वपूर्ण रही है । कुछ विकासशील देशों भारत चीन पाकिस्तान ब्राजील मेक्सिको व अन्य में प्रति व्यक्ति भोजन की आपूर्ति सन 1962 में जो 2000 कैलोरी प्रतिदिन थी , वह बढ़कर सन 1995 में 2500 कैलोरी से अधिक हो गई । इस बढ़ोतरी के कारण बेहतर बी बड़ी हुई सिंचाई व्यवस्था उच्च किस्म की खाद और कीटनाशकों का प्रयोग आदि रहे हैं जिसके परिणाम हम हरित क्रांति के साथ-साथ विश्व के दूसरे भागों से भोजन सामग्री के आयात में आई इतनी वृद्धि में देख सकते हैं।
विकासशील देशों में गेहूं , चावल , मक्का और बाजार , के मामले में उत्पादकता पत्थर या फसल रुद्रता जैसी स्थितियां पाई गई है भारत दुर्भाग्य वास 200 मिलियन बालको सहित विश्व के 1000 मिलियन लोग चिरकालिक अल्प पोषण से ग्रसित हैं (यू. एन. ओ)।
विकासशील देशों में गहन खेती के कारण पर्यावरणीय चरण हो रहा है । रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग और दुरुपयोग तथा फसलों का नया अपवर्तन मृदा की रसायनिकता को बदल रहा है यही नहीं घटिया कृषि वीडियो के कारण मृदा का चरण हो रहा है । मृदा निर्माण की प्रक्रिया काफी धीमी होती है । इसके लिए सामान्य कृषि दशाओं के अंतर्गत ऊपर की 2.5 सेंटीमीटर मृदा को बनने में 200 से 1000 वर्ष तक लग जाते हैं घर अतः अधिक मृदा मैत्रीपूर्ण विधियों को अपनाने की जरूरत है। इन विधियों में समोच्या खेती, सीढ़ीदार खेती, रोक और बड़े खेतों के स्तर पर उन्नत भूमि प्रयोग की विधियां आती है(यू. एन. ओ)।
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