मनुष्य के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का असर

विभिन्न डिग्री के एक्सपोज़र, संवेदनशीलता और अलग-अलग क्षेत्रों की संयोजन क्षमता के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का असर एकसमान रूप से नहीं फैलेगा:-

इस बात की संभावना है कि जलवायु परिवर्तन तीव्र मौसम संबंधी घटनाओं से जुड़े स्वास्थ्य ज़ोखिमों को बढ़ाएगा, जो अब नियमित, प्रचंड, लंबे समय तक हो रहा है और जिसकी ज़्यादा स्थानिक सीमा है. यूवी रेडिएशन में इज़ाफा, बढ़ता वायु प्रदूषण, बढ़ते खाद्य और जल से दूषण, मूषकों और वेक्टर जनित संक्रामक रोगों का विस्तार या पुन:उभरना और संवेदनशील आबादी के सामने तेज़ी से खड़ी हो रही स्वास्थ्य चुनौतियां जलवायु परिवर्तन के कुछ अतिरिक्त ज़ोखिम हैं. इसके अतिरिक्त, जलवायु में बदलाव से जुड़ा तीव्र मौसम अस्पताल भवनों को नष्ट कर सकता है, बिजली और पानी में कटौती और पहली पंक्ति में हेल्थकेयर की आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है क्योंकि बाधित मार्ग आपूर्ति और आवश्यक सेवाओं (जैसे ऊर्जा और जल आपूर्ति) तक पहुंच को सीमित करने के साथ ही मरीज़ तक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने में बाधा बन सकता है|

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2030 और 2050 के बीच, जलवायु परिवर्तन के कारण कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी से सालाना करीब 2,50,000 अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है. 2030 तक स्वास्थ्य पर सीधे होने वाले नुकसान की कीमत हर साल 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच होने का अनुमान है. समूचा विश्व समुदाय अत्यधिक गर्मी, बीमारियों के बदलते स्वरूप, आपदाओं के साथ ही खाद्य और जल सुरक्षा पर ग्लोबल वॉर्मिंग के संभावित विनाशकारी प्रभावों से उत्पन्न स्वास्थ्य ज़ोखिमों से जूझ रहा है. हालांकि विभिन्न डिग्री के एक्सपोज़र, संवेदनशीलता और अलग-अलग क्षेत्रों की संयोजन क्षमता के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का असर एकसमान रूप से नहीं फैलेगा|

स्वास्थ्य के निर्धारक, जलवायु परिवर्तन के बहु सामाजिक और पर्यावरणीय असर से प्रभावित हो रहे हैं जो वायु प्रदूषण की दुर्दशा, तापमान में तीव्र उतार चढ़ाव, पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल की कमी, खाद्य असुरक्षा और अभाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता के रूप में सामने आ रहा है. प्राकृतिक आपदाएं और वर्षा का परिवर्तनशील पैटर्न भी आवश्यक सेवाओं और मेडिकल सुविधाओं को प्रभावित कर रहा है और संपत्ति और खाद्य स्रोतों को नष्ट कर रहा है|

अत्यधिक तापमान सीधे तौर पर कार्डियोवैस्क्यूलर और सांस की बीमारियों से जुड़ा है, विशेषकर बुज़ुर्गों में, जो ओज़ोन के बढ़ते स्तर और वायुमंडल में अन्य प्रदूषकों से और भी बढ़ सकता है. उदाहरण के तौर पर, 2003 में गर्मी के मौसम में हीटवेव के दौरान यूरोप में 70,000 से अधिक मौतें रिकॉर्ड की गई थीं, और सूक्ष्म कणिका तत्वों के बीच लंबा एक्सपोज़र क्रोनिक ब्रोंकाइटिस की बढ़ती संख्या, फेफड़ों की घटती कार्यक्षमता और फेफड़ों के कैंसर और हृदय रोगों से बढ़ती मृत्यु दर से संबंधित हैं. इसके अलावा, जलवायु से जुड़ी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या 1960 से तीन गुना अधिक बढ़ गई है|

Comments

BPSC 70 वीं का NOTIFICATION हुआ जारी :- 2024

राज्य एवं उनके प्रमुख लोक नृत्य

भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज एवं पुर्तगालियों का आगमन

Followers

Contact Form

Name

Email *

Message *