नृजातीय समूह

नृजातीय समूह

नृजातीय समूह बृहत्तर समाज में जनसंख्या की एक विशिष्ट श्रेणी है जिसकी संस्कृत पर्यावरण  उसे समाज से भिन्न होती है । इस समूह के सदस्य होते हैं या अपने विषय में सोचते हैं अथवा माने जाते हैं कि वह एक ही प्रजाति राष्ट्रीयता अथवा संस्कृति के बंधनों से बंधे हुए हैं । दूसरे शब्दों में लोगों का एक समूह जो सजा प्रजाति धार्मिक भाषण अथवा राष्ट्रीय विशेषताओं से मुक्त होता है वह नृजातीय समूह कहलाता है।

मानव जाति के विभाजन में संस्कृत तत्व , जैसे भाषा, धर्म  अस्थाई , राष्ट्रीयता आदि जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तानांतरित होती है, का महत्वपूर्ण स्थान है वास्तव में मानव जाति का एक ऐसा विभाजन अधिक सटीक और पर शुद्ध होगा यदि वह जीवन शैली और विचारधारा पर आधारित हो ।

संस्कृति को इस प्रकार परिभाषित किया गया है यह वह जटिल संपूर्णता है जिसमें समाज के एक सदस्य के रूप में मानव द्वारा अर्जित ज्ञान, भाषा अगर आस्था कल नैतिक नियम रीति रिवाज तथा अन्य क्षमताएं और स्वभाव सम्मिलित किए जाते हैं।

इस अवधारणा की लघु एवं उपयोगी इस प्रकार दी गई है संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है ।

इस पर आम सहमति है की संस्कृत सीखी जाती है अगर वह मानव को उसके प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिवेश के साथ अनुकूलन के लिए क्षमता प्रदान करती है । यह अत्यधिक परिवर्तनशील है वह संस्थाओं , विचार प्रतिमानों और भौतिक पदार्थों में प्रकट होती है ।  संस्कृति लोगों की एक जीवन शैली है , यह लोगों को आपस में जोड़ती है और उनके सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक विकास में सहायक होती है। 

लोगों को आपस में जोड़ने रखने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व भाषा है । भाषा में अंतर दो समूहों के बीच पारस्परिक क्रियो और संचार माध्यम के लिए महत्वपूर्ण बड़ा होती है । दूसरी भाषा बोलने वाला व्यक्ति अपने में से नहीं है , वह परदेसी है ऐसी भावना रहती है । भाषा एक माध्यम है जिसके द्वारा विचारों का संप्रेषण होता है तथा जो संस्कृत याकूबता के विकास में सहायक होती है । विभिन्न देशों में कूटनीति , प्रशासन और राज्य प्रबंधन के लिए विभिन्न भाषा होती है । कुछ देशों में दो अथवा दो से अधिक शासकीय भाषाएं होती है । भाषाओं का क्षेत्रीय विभाजन अत्यधिक जटिल है । बोलचाल की भाषा में अंतर ही लोगों को अलग करने के लिए पर्याप्त है । सतलज गंगा मैदान , जो कि भारत का हृदय स्थल है , वह बोलचाल की भाषा और उच्चारण में अनेक भिन्नताएं हैं । बृजवासी क्षेत्र को हरियाणवी खड़ी बोली पानीपत , सोनीपत क्षेत्र से उच्चारण के आधार पर अलग सीमांकन किया जाता है , यद्यपि दोनों ही क्षेत्र पास पास है भारत में इस तरह की कई दर्शन भाषण और कई सौ बोलचाल की भाषण बोलियां है जो नृजाति अथवा संस्कृत समूह का आधार हो सकती है ।

नृजाति समूह की पहचान में धर्म एक अन्य महत्वपूर्ण आधार है । मानव समुदायों पर धार्मिक विश्वास का अत्यधिक प्रभाव रहता है । धार्मिक विश्वासों का गहरा प्रभाव रहता है , कभी यह विभिन्न प्रजाति और भाषाई समूह को आपस में जोड़ता है तो कभी लोगों को अलग भी करता है अगर अजब की में अन्य दृष्टि से सामान्य होते हैं । धर्म में आधारभूत तत्व इसका अदृश्य शक्तियों में विश्वास का पाया जाना है , जो मानव के साथ रहता है तथा सभी जीवन की क्रियो में दखल रखता है । मूलभूत प्रभाव जो यह मानव समाज पर डालता है वह है प्राकृतिक वातावरण से भिन्न प्रकार से उसकी जीवन शैली पर नियंत्रण द्वारा धर्म प्रतिबंधों तथा नियमों का निर्धारण करता है । पौधों और पशुओं की पूजा का विधान मुख्य आदिवासी लोगों में पाया जाता है । अपेक्षाकृत अधिक शब्द समाज , जैसे भारतीय समाज में बाढ़ और पीपल वृक्षों और गए तथा सर्वाधिक की पूजा की जाती है । कश्मीर के गुर्जर बकरवाल तथा खीरी गिरीश स्थान के खिर्गिज लोग कभी हरे वृक्षों को नहीं कटते हैं पर इसी प्रकार लद्दाख प्रदेश के बहुत लोग जीवित पशु को नहीं मारते हैं , में अमृत पशुओं को ही काम में लेते हैं । कनाडा और ग्रीनलैंड के एस्किमो तथा साइबेरिया के याकूत और चुकची बेरीबउ और बारहसिंगा का शिकार करने के बाद शिकार अभियान की समाप्ति का एक समारोह मानते हैं । इस समारोह कल में हुए करी बाबू अथवा बारहसिंगा की हत्या नहीं करते हैं । यहूदियों और मुसलमानों में सूअर का मांस खाना वर्जित है और इसी कारण में सु और पालन नहीं करते हैं । इसी प्रकार मुस्लिम समाज में शराब का प्रयोग वर्जित है और इसी कारण यह लोग अंगूरों की खेती केवल अंगूर प्राप्त करने अथवा किशमिश बनाने के लिए करते हैं मुसलमान में ब्याज पर ध्यान दिया जाना भी वर्जित है इसी कारण मुस्लिम देशों में बैंकिंग का कार्य यूनानियों , यहूदियों और आर्मेनिया लोगों द्वारा किया जाता है ।

मेघालय की खासी जनजाति तथा मिजोरम और मेघालय की कुछ जातियों में दूध और दूध उत्पादों का प्रयोग वर्जित है अगर इसी कारण यह जातियां गायों की दुलारी वह देरी व्यवसाय नहीं करती है । यूरोप के ईसाइयों में उपवास प्रथा के कारण मछली की खपत उत्तर पश्चिमी यूरोप में बहुत बढ़ गई है । इन देशों में जहां भोजन कृषि और पशुपालन से प्राप्त होता है अगर मछली उद्योग का विकास आधुनिक उद्योग के रूप में हुआ है ।

प्राचीनतम धार्मिक आस्थाएं आत्मवादी थी अगर अर्थात यह लोग विभिन्न आत्माओं की पूजा किया करते थे । इन आत्माओं का आवास मनुष्य में , बाहरी जगत जैसे बन , जल धाराओं और पर्वतों में रहता है बार आत्म वादी धर्म आज भी विश्व के कई आदिवासियों और एकाकी निर्जन क्षेत्र के निवासियों में पाया जाता है ।

भारत में हिंदू धर्म एक प्रमुख धर्म है । हिंदुओं का सामाजिक और नैतिक ढांचा हिंदू वर्ण व्यवस्था व उपजातियां पर आधारित है । हिंदू धर्म में हुए ही व्यक्ति शामिल हैं जिनमें आपसी बेटी व्यवहार और सब भोज हो सकता है । संभवत इस प्रथा को अपनाने के पीछे आर्यों का यह उद्देश्य रहा होगा कि उनके यहां मूल निवासियों द्रविड़ लोगों में विलय ना हो सके । बौद्ध धर्म का उदय अगर हिंदू धर्म के विरोध स्वरूप हुआ । बौद्ध धर्म ने हिंदू धर्म से बहिष्कृत और भागो लोगों की अंगीकार करने में उत्सुकता प्रदर्शित की तथा उन्हें चिंतन और एकांतवासी जीवन के लिए प्रेरित किया । तिब्बत और चीन के सिक्यांग प्रांत में लगभग एक चौथाई व्यक्ति साधु है , जिन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर स्वयं को नैतिक बंधनों मे डालते हुए जनसंख्या की और मानव शक्ति को प्रभावी ढंग से प्रभावित किया है वह बौद्ध धर्म दक्षिणी और पूर्वी एशिया का अति महत्वपूर्ण धर्म है । चीन में कम्युनिस्ट वाद और तावोवाद दो अन्य धर्म भी है कन्फ्यूशियस की शिक्षक 551 से 478 ईसा पूर्व सामाजिक संबंधों से संबंधित है अगर जिसमें पूर्वजों की पूजा जैसे पुरातन विश्वास हो को सम्मिलित किया गया भारत कन्फ्यूशियस के समकालीन लाओत्ज़ ने तावोवाद नमक धर्म का प्रचार किया। उसने पुरातन तथा अधोस्तर मैं आध्यात्मिक और रहस्य में तत्वों पर बल देते हुए निश्चेष्ट धर्म को जन्म दिया । जापान की अपनी अलग ही आस्था प्रणाली है । छठी शताब्दी में सिंटू नमक आदम आतंकवादी धर्म में बौद्ध धर्म के प्रवेश द्वारा इसका महत्व बढ़ गया ।

दक्षिण पश्चिम एशिया में तीन इकेश्वरवादी धर्म यहूदी ईसाई और इस्लाम का उद्भव हुआ । यहूदी जिसका उद्भव ईसा पूर्व 13वीं शताब्दी में हजरत मूसा द्वारा हुआ निसंदेह इकेश्वरवादी धर्म है । सन 70 और 135 ईस्वी में रोमन साम्राज्य से टकरा और जेरूसलम के पतन के पश्चात यहूदियों को अपनी पवित्र भूमि से बाहर धकेल दिया गया । उसके लगभग 2000 वर्ष पश्चात 1948 में पुणे एक यहूदी राज अस्तित्व में आया । सब आज यहूदियों की बहुत बड़ी संख्या जो यहूदी धर्म से संबंधित हुई है , संसार भर में फैली हुई है । विश्व में सबसे अधिक यहूदी संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं तथा दूसरा नंबर इजराइल का है।


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