जनजातीय समाज (Tribal Society):- भारत में जनजातीय समुदाय : संख्या एवं वितरण और जनजातीय समुदायों की विशेषताएँ

जनजातीय समाज (Tribal Society):- भारत में जनजातीय समुदाय : संख्या एवं वितरण  और जनजातीय समुदायों की विशेषताएँ


जनजातीय समाज (Tribal Society)



भारत में जनजातीय समुदाय : संख्या एवं वितरण (Tribal Communities in India: Strength and Distribution) 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में आदिवासियों की संख्या 6.758 करोड़ थी।

यह इंगलैंड की जनसंख्या के लगभग बराबर ही थी। (Manpower Profile, Ind थी। यह 34) जनजाति जनसंख्या देश की कुल आबादी की 8.08 प्रतिशत थी। जनजाति, 1998: अफ्रीका के बाद भारत में द्वितीय स्थान पर है। भारत में जनजातियाँ समूचे देश में फैली हैं। अलग-अलग राज्यों में उनकी संख्या कुछ सौ से लेकर लाखों में है। 1991 की जनगणना के अनुसार सबसे अधिक आदिवासी मध्य प्रदेश में (1.54 करोड़) हैं। और उसके बाद महाराष्ट्र (0.73 करोड़), उड़ीसा (0.70 करोड़), बिहार (0.66 करोड़), और गुजरात में (0.61 करोड़) हैं (Manpower Profile, India, 1998:35) देश की कुल जनसंख्या के तीन पाँचवे भाग से कुछ अधिक (62.75%) आदिवासी पाँच राज्यों में पाए जाते हैं। मिजोरम में राज्य की कुल जनसंख्या के 95 प्रतिशत जनजाति के लोग हैं, नागालैण्ड में 89 प्रतिशत, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में प्रत्येक में 80 प्रतिशत, त्रिपुरा में 70 प्रतिशत, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में प्रत्येक में 23 प्रतिशत, राजस्थान में 12 प्रतिशत, और असम और बिहार प्रत्येक में 10 प्रतिशत इस प्रकार 4 राज्यों में जनजाति जनसंख्या राज्यों की कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत हैं।

संख्या में सर्वाधिक गोंड (मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश में) लगभग 40 लाख और भील (राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश) लगभग 40 लाख हैं। सबसे कम संख्या वाली जनजाति अण्डमानी केवल 19 हैं। जनजातियों का अधिकतर हिस्सा स्वयं को हिन्दू मानता है। धर्म से 89 प्रतिशत हिन्दू, 5.5 प्रतिशत ईसाई, 0.3 प्रतिशत बौद्ध, 0.2 प्रतिशत मुसलमान, और 5 प्रतिशत अन्य हैं। वे सभी जो स्वयं को हिन्दू मान हैं पूर्णरूपेण हिन्दू सामाजिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते हैं। इस सन्दर्भ में जनजाति जनों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है: (1) जो हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में ढल गए हैं, अर्थात् जिन्होंने जाति संरचना को मान लिया है, जैसे भील, भूमिज, आदि (2) जो हिन्दू सामाजिक व्यवस्था की ओर स्वीकारात्मक भाव से झुके हुए हैं, अर्थात यद्यपि उन्होंने हिन्दुओं के आचार तत्व (ethos), प्रतीकों (symbols), और सांसारिक दृष्टिकोण (world-view) को धारण कर लिया है लेकिन उन्होंने स्वयं को जाति ढांचे में शामिल नहीं किया है, जैसे सन्थाल, ओरांव, गोंड। (3) हिन्दू सामाजिक व्यवस्था की ओर नकारात्मक झुकाव वाले, जैसे मिजो, नागा।

(4) हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के प्रति उदासीन, जैसे उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र (NEFA) की जनजातियाँ।

भौगोलिक वितरण की दृष्टि से एल.पी. विद्यार्थी (L.P. Vidyarthi, ICSSR Survey of Research In Sociology and Anthropology, Vol III, 1972: 32) ने जनजातीय लोगों को चार क्षेत्रों में बाँटा है:

(a) हिमालियन क्षेत्र, जिसमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश (भोंट, गुजर, गादी), उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र (थारु) असम (मिजो गारो, खासी), मेघालय, नागालैण्ड (नागा), मणिपुर (माओ) और त्रिपुरा (त्रिपुरी) शामिल है और देश की कुल जनजाति संख्या का 11 प्रतिशत है।

(b) मध्य भारत क्षेत्र जिसमें पश्चिम बंगाल, बिहार (सन्थाल मुण्डा, ओराँव और हो) उडीसा (खोण्ड, गोंड) शामिल है और देश की कुल जनजातीय जनसंख्या का 57 प्रतिशत हैं।

(c) भारत पश्चिमी क्षेत्र जिसमें राजस्थान, (भील, मीणा, गरासिया), गुजरात, (भील, दुबला, घोदिया) और महाराष्ट्र (भील, कोली, महादेव कोकना) शामिल हैं और भारत की कुल जनजातीय संख्या का 25 प्रतिशत है और

(d) दक्षिण भारत क्षेत्र, जिसमें आन्ध्र प्रदेश (गोण्ड, कोया, कोण्डा, दोवा), कर्नाटक (नैकदा, मराती) तमिलनाडु (इरुला, टोडा) केरल (पुलयन, पनलयन) और अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह (अण्डमानी, निकोबारी) शामिल हैं और देश की जनजातीय जनसंख्या का लगभग 7 प्रतिशत हैं।

विभिन्न राज्यों में रहने वाले जनजाति लोग विभिन्न प्रजातीय (racial) समूहों से सम्बद विभिन्न प्रोटोआस्ट्रोलाइड (Protoaustroloid) जिसमें संथाल, मुण्डा, औरोव, और सामाज शामिल हैं। मंगोलियन (Mangoloid) जिसमें गोरा, आदि शामिल हैं और नीविये

भाषाई आधार पर उन्हें तीन समूहों में विभाजित किया जाता है; ये हैं : आस्ट्रिक (Austric) (जिसमें सन्थाल, मुण्डा, भूमिज शामिल हैं; द्रविड़ जिसमें ओरांव, टोडा, चेंचू शामिल हैं; और तिब्बती-चीनी  जिसमें गारो, भूटिया, आदि शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें आर्थिक (भोजन एकत्र करने, शिकार करने वाले, हलवाहे, कृषि करने वाले, पशु-पालक, श्रमिक), सामाजिक और धार्मिक श्रेणियों में भी विभाजित किया जाता है। उनके विकास के स्तर और सामाजिक-सांस्कृतिक एकता में यद्यपि बड़ी विविधताएं मौजूद हैं लेकिन कुछ समानताएं भी हैं। जनजाति के लोग समग्र रूप में प्राविधिक (technologically) शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं। यद्यपि अधिकतर जनजातियां सामाजिक संगठन की पितृवंशीय व्यवस्था का अनुसरण करते हैं, फिर भी कुछ ऐसे भी हैं जिनमें मातृवंशीय व्यवस्था चलती है (जैसे, गारो, आदि) नागाओं, मिजो, सन्थालों, मुण्डा, ओराँओं के अच्छे अनुपात ने ईसाई धर्म अपना लिया है। कुछ लोगों को बौद्ध परिचय से भी चिन्हित किया जाता है, जैसे, भोटिया, लप्चा, आदि।

 

जनजातीय समुदायों की विशेषताएँ

जनजातीय लोग वृहत् सांस्कृतिक प्रभावों से अपेक्षाकृत बचे रहते हैं। उनमें सापेक्ष रूप से समानता होती है तथा उनके पास सरल प्रविधि (technology) भी होती है। वे आत्माओं, जादू भूत विद्या में विश्वास करते हैं। उनके अपने निषेध (taboos) होते हैं जो उनके कुछ कार्यों को वर्जित करते हैं जो समुदाय, अलौकिकताया (supernatural), जादू के परिणामों से दण्डित होते हैं। अधिकतर जनजातियां जीववाद (animism) में विश्वास करती है जिसके अनुसार सभी वस्तुओं-चेतन और जड़ (animate and inanimate) में स्थाई या अस्थाई रूप से आत्माएं रहतीं हैं। अक्सर कोई कार्य इन आत्माओं के कारण होता है। कुछ आत्माओं की पूजा की जाती है और कुछ का आदर किया जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि जीववाद जनजातियों में धर्म का प्रारम्भिक स्वरूप था। अनेक जनजातियां पूर्वजों की पूजा में भी विश्वास करती हैं।

भारत में जनजातियों की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

सामन्य नामः प्रत्येक जाति का अपना विशिष्ट नाम होता है जिसके द्वारा उसको दूसरों से अलग पहचाना जाता है।

सामान्य सीमा (territory): जनजातियों की आमतौर पर सामान्य भौगोलिक सीमा होती है। सामान्य भाषाः एक जनजाति के सदस्य एक ही भाषा बोलते हैं। प्रत्येक जनजाति की अपनी बोली होती है, भले ही लिपि न भी हो।

सामान्य संस्कृतिः प्रत्येक जनजाति में व्यवहार के स्वरूप, त्यौहार और पूजा की मूर्तियां निर्धारित हैं।

अन्तर्विवाहः  प्रत्येक जनजाति में अपने ही सदस्यों के बीच विवाह करने का प्रचलन है।

राजनैतिक संगठनः  प्रत्येक जनजाति का अपना राजनैतिक संगठन होता है। उनके बुजुर्गों की परिषद (council) होती है जो सदस्यों को नियंत्रित रखती है।

आर्थिक संक्रियताः  राष्ट्रीय औसत 43 प्रतिशत के विपरीत, 57 प्रतिशत जनजातियाँ आर्थिक रूप से स्वयमेव सक्रिय होती हैं।

 



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