भारत में यूरोपियों का आगमन
भारत में यूरोपियों का आगमन
यूरोप में 15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी के मध्य तक आशा अतीत आर्थिक रूपांतरण हुआ। इस काल अवधि के दौरान कृषि एवं विशेष रूप से विनिर्माण में अपनाई गई प्रौद्योगिकी के आधार पर व्यापार एवं बाजारों में विस्मकारी एवं तीव्र वृद्धि हुई हुई । पूंजीवाद, सामंतवादी अर्थव्यवस्था एवं समाज को प्रतिस्थापित कर रहा था । हालांकि, यूरोप में होने वाले परिवर्तन यही तक सीमित नहीं थे। 15वीं शताब्दी के पश्चात विकास से घनिष्ठ रूप से संबंध विश्व इतिहास यूरोप में सरकार हुआ। ऐसा इसलिए हुआ कि पूंजीवाद व्यवस्था के रूप में लाभार्जन और व्यापार में प्रतियोगिता पर आधारित है। इसे कच्चे माल एवं वस्तुओं की बिक्री के लिए निरंतर विस्तार की आवश्यकता होती है ।इस प्रकार, इसका विस्तार विश्व व्यापी था जो अन्य प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं ,समझो और संस्कृतियों को निकल रहा था।
15वीं शताब्दी में महत्वपूर्ण बदलाव कब हुई जब यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियां नवीन विकल्पों की खोज में बाहर निकली, इसका यह अर्थ नहीं है कि अन्य मौजूद संस्कृतियों से उनका पहले संपर्क नहीं था । भारत के ग्रीक और रोम के साथ क्रिश्चियन युग शुरू होने से पूर्व और पक्ष से ही व्यापारिक संबंध थे । चीन एवं एशिया के अन्य हिस्सों से संपर्क बेहद प्राचीन , जो समस्त मध्य युग तक जारी रहे ।
मार्को पोलो ( 1254-1324 ईस्वी) जिसने चीन की यात्रा की के यात्रा वृतांतों ने यूरोपीय को बेहद आकर्षित किया । पर्व की बेशुमार धन संपदा और समृद्धि की कहानियां ने यूरोपीय की लालसा में वृद्धि की ।
इटली में लगभग 12वीं शताब्दी से यूरोप के साथ है पूर्व के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया । दक्षिण पूर्व एशिया और भारत के साथ व्यापार विभिन्न स्थल मार्गों और जल मार्गो से किया गया । एक मार्ग से पूर्वी वस्तुओं को भारत की खाड़ी से होते हुए इराक एवं तुर्की लाया गया । वहां से इन्हें स्थल मार्गो से जेनेवा और वेनिस पहुंचाया जाता था । एक अन्य मार्ग से लाल सागर होते हुए वस्तुओं को मिस्र में अलेग्जेंड्रिया लाया जाता था लेकिन तब वहां स्वेज नहर नहीं थी इसीलिए अलेग्जेंड्रिया को भूमध्य सागर के माध्यम से इटली के शहरों को जोड़ा गया था ।
उत्तर मध्यकाल के दौरान विशेष कर इटली में विश्वविद्यालय में पुनजागरण संबंधी विचारों का प्रश्न पोर्टल हुआ और 16वीं शताब्दी के दौरान सहित और विभिन्न कलाओं में इसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति हुई व्यापारियों व्यवसाईयों और बैंकों के उदित हो रहे वर्ग से यूरोप के नवीन मध्य वर्ग का निर्माण हुआ । यह वर्ग पूर्ण जागरण और सुधार आंदोलन में बेहद प्रभावित हुआ।
पूर्ण जागरण के उद्गम स्थल इटली में व्यापारी अग्रणी 12वीं शताब्दी से ही यूरोपीय देशों को कलात्मक एवं विलसता की वस्तुओं की आपूर्ति कर रहे थे जिससे वह बेहद संपन्न थे । इस प्रकार पूर्वी देशों के साथ इटली का व्यापार में सर्वोच्च था और यूरोपीय देशों को सम्मान की बड़ी उपलब्धि इटली द्वारा की जाती थी।
यूरोप के कई देश व्यापार के क्षेत्र में इटली के एकाधिकार को तोड़ना चाहते थे।15वीं शताब्दी से ही अटलांटिक तट पर बसे देश अफ्रीका होकर पूर्व की ओर जाने का वैकल्पिक मार्ग खोज रहे थे। उल्लेखनीय है कि 15वीं शताब्दी के उत्तराखंड में विभिन्न केंद्रीकृत राज्यों और शक्तिशाली नरेशों का अभ्युदय हुआ जिन्होंने भौगोलिक खोजो को बढ़ावा दिया तथा साथ ही फौजियों को वित्तीय मदद भी मुहैया की। पुर्तगाल एवं स्पेन ऐसे देश में प्रमुख है। 15वीं और 16वीं शताब्दी में मुद्रण और नक्शा बनाने का कार्य तेजी से विकसित हुआ और कंपास को गोली की प्रेषण साल बारूद इत्यादि जैसी प्रौद्योगिकी है उपलब्धियां ने फौजियों की अत्यधिक सहायता की ।
इस प्रकार पुनजागरण का अभ्युदय , कृषि में निवेश कम लाभ वाला सिद्ध होना , कच्चे माल की आवश्यकता, नवीन बंजारों की प्राप्ति एवं विस्तार, पूर्व की धन संपदा का आकर्षण है इसी मत के प्रचार के उत्कट इच्छा एवं यूरोप में पुरातन व्यवस्था के स्थान पर नवीन व्यवस्था के स्थापित होने के कर्ण ने भारत में यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के आगमन का मार्ग प्रस्तुत किया ।

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