वुड्स डिस्पैच :- व्यवसाय के लिए शिक्षा चार्ल्स वुड का नीतिपत्र (वुड्स डिस्पैच) (ईस्ट इंडिया कंपनी)
वुड्स
डिस्पैच :- व्यवसाय के लिए
शिक्षा चार्ल्स वुड का नीतिपत्र (वुड्स डिस्पैच) (ईस्ट इंडिया कंपनी)
1854 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लंदन स्थित कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने भारतीय गवर्नर जनरल को शिक्षा के विषय में एक नोट भेजा। कंपनी के नियंत्रक मंडल के अध्यक्ष चार्ल्स वुड के नाम से जारी किए गए इस संदेश को वुड का नीतिपत्र (वुड्स डिस्पैच) के नाम से जाना जाता है। इस दस्तावेज़ में भारत में लागू की जाने वाली शिक्षा नीति की रूपरेखा स्पष्ट करते हुए एक बार फिर दोहराया गया है कि प्राच्यवादी ज्ञान के स्थान पर यूरोपीय शिक्षा को अपनाने से कितने व्यावहारिक लाभ प्राप्त होंगे।
इस
दस्तावेज़ में यूरोपीय शिक्षा का एक व्यावहारिक
लाभ आर्थिक क्षेत्र में बताया गया था। उसके मुताबिक, यूरोपीय शिक्षा के माध्यम से
भारतीयों को व्यापार और
वाणिज्य के विस्तार से
होने वाले लाभों को समझने और
देश के संसाधनों के
विकास का महत्त्व समझने
में मदद मिलेगी। यदि उन्हें यूरोपीय जीवन शैली से अवगत कराया
गया तो उनकी रुचियों
और आकांक्षाओं में भी बदलाव आएगा
और ब्रिटिश वस्तुओं की माँग पैदा
होगी क्योंकि तब यहाँ के
लोग यूरोप में बनी चीज़ों को अपनाना और
खरीदना शुरू कर देंगे।
वुड के नीतिपत्र में यह तर्क भी दिया गया था कि यूरोपीय शिक्षा से भारतीयों के नैतिक चरित्र का उत्थान होगा। इससे वे ज़्यादा सत्यवादी और ईमानदार बन जाएंगे और फलस्वरूप कंपनी के पास भरोसेमंद कर्मचारियों की कमी नहीं रहेगी। दस्तावेज़ के मुताबिक, पूरब का साहित्य न केवल भयानक त्रुटियों से भरा पड़ा था बल्कि यह लोगों में न तो काम के प्रति दायित्व और समर्पण का भाव पैदा कर सकता है और न ही शासन के लिए आवश्यक निपुणता पैदा कर सकता है।
1854 के नीतिपत्र के बाद अंग्रेज़ों ने कई अहम कदम उठाए। सरकारी शिक्षा विभागों का गठन किया गया ताकि शिक्षा संबंधी सभी मामलों पर सरकार का नियंत्रण स्थापित किया जा सके। विश्वविद्यालयी शिक्षा की व्यवस्था विकसित करने के लिए भी कदम उठाए गए। 1857 में जब मेरठ और दिल्ली में सिपाही विद्रोह कर रहे थे उसी समय कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की जा रही थी। स्कूली शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के प्रयास भी किए गए।
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