उच्च न्यायालयों की भूमिका
उच्च न्यायालयों की भूमिका
- प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर, कुछ उच्च न्यायालयों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है, भले ही सरकार द्वारा उन्हें इस आधार पर हतोत्साहित करने की कोशिश की जा रही हो, कि उच्चतम न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर रहा है तो उच्च न्यायालयों को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है।
- परन्तु इसके बावजूद चार उच्च न्यायालयों (कर्नाटक, मद्रास, आंध्र प्रदेश और गुजरात) ने प्रवासी मजदूरों के अधिकारों के बारे में सवाल पूछना शुरू कर दिया है। यह आपातकाल के दौरान उत्पन्न स्थिति की पुनरावृति है, जब उच्च न्यायालयों ने अधिकारों के अतिक्रमण के विरूद्ध साहसपूर्वक कदम उठाया था, लेकिन सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा अंततः इसे खारिज कर दिया गया था।
- इसके अलावा मद्रास उच्च न्यायालय ने मीडिया के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामलों को यह कहकर खारिज कर दिया है, कि लोकतंत्र को इस तरह से नहीं दबाया जा सकता है।
- इसके विपरीत, सॉलिसिटर-जनरल के तर्कहीन दावे (जिसमें कहा गया था कि श्रमिकों का पलायन फर्जी समाचारों के कारण था), के लिए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मीडिया हाउसों को और जिम्मेदारी से रिपोर्ट करने की सलाह दी जानी चाहिए। आगे की राह
- न्यायालय के पास अनुच्छेद 142 के तहत भारत के संविधान द्वारा प्रदत शत्तिफ़ है, जिसके तहत पूर्ण न्याय हेतु न्यायालय कोई भी उपाय कर सकती है। परन्तु सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाचारी का प्रदर्शन कर, न्यायलय के आदर्श वाक्य फ्यतो धर्मस्ततो जयाय् के साथ न्याय नहीं करता है।
- ऐसे समय में, उच्च न्यायालय तर्कसंगतता, साहस और दयालुता का भाव लिए समाने तो आते हैं परन्तु अब यह एक ऐसा समय है, जब सर्वाेच्च न्यायालय को सरकार की बातों से सहमत होने के बजाय, विपत्ति की स्थिति में हस्तक्षेप करना चाहिए, क्योंकि भारतीय लोकतंत्र और कानून का अस्तित्व, विशेष रूप से COVID-19 महामारी के समय, संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने वाले न्यायालय पर निर्भर है।
- प्रवासी मजदूरों का संकट आज भी जारी है, रेलवे स्टेशनों और विभिन्न राज्य की सीमाओं पर लाखों लोग फंसे हुए हैं, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पर्याप्त परिवहन, भोजन और आश्रय की तुरंत व्यवस्था प्रदान किए जाए।
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